डॉ. D.Y. चंद्रचूड़ का कार्यकाल भारत के Chief Justice के रूप में एक महत्वपूर्ण दौर साबित हुआ। उनका कार्यकाल 2016 में Supreme Court में नियुक्ति से लेकर 2022 में 50वें Chief Justice के रूप में शुरुआत और 10 नवंबर 2024 तक रहा। इस दौरान, उन्होंने 700 से अधिक फैसले दिए, जिनमें से कई फैसलों ने भारतीय संविधान और प्रशासनिक कानून को आकार दिया। उनके निर्णय और विचारधाराएं प्रगति की ओर थे, जिसमें व्यक्तिगत अधिकारों का संरक्षण और सरकार की सीमाओं का गहन विश्लेषण था। यहां हम उनके कार्यकाल के कुछ महत्वपूर्ण मामलों पर चर्चा करेंगे, जो उनकी न्यायिक धरोहर को उजागर करते हैं।
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प्रमुख निर्णय:
- Government of NCT of Delhi vs. Union of India (May 11, 2023): दिल्ली सरकार को प्रशासनिक सेवाओं पर विधायी और कार्यकारी अधिकार दिए गए, लेकिन सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस और भूमि जैसे क्षेत्रों से बाहर रखा गया। इस निर्णय ने दिल्ली सरकार के अधिकारों और केंद्र सरकार के बीच संबंधों को पुनः परिभाषित किया।
- Subhash Desai vs. Principal Secretary, Governor of Maharashtra (May 11, 2023): महाराष्ट्र में शिवसेना संकट के दौरान गवर्नर के फैसले को बरकरार रखा, जिसमें मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे द्वारा floor test के बिना इस्तीफा देने का मामला था। चंद्रचूड़ ने यह स्पष्ट किया कि संविधानिक प्रक्रियाओं को दरकिनार नहीं किया जा सकता है।
- Supriyo v. Union of India (October 17, 2023): समलैंगिक विवाह के अधिकारों पर बहस, जिसमें चंद्रचूड़ ने LGBTQ+ समुदाय के अधिकारों का समर्थन किया। इस मामले में बहुमत ने समलैंगिक विवाह को कानूनी रूप से मान्यता देने से इनकार किया, लेकिन न्यायालय ने यह माना कि सरकार को इसे लेकर कदम उठाने की आवश्यकता है।
- Cox and Kings Ltd v. SAP India Pvt Ltd (December 6, 2023): “Group of companies” सिद्धांत के तहत कॉर्पोरेट सौदों में गैर-हस्ताक्षरकर्ताओं को मध्यस्थता समझौतों में बांधने का समर्थन किया। चंद्रचूड़ के बहुमत निर्णय ने इसे आधुनिक मध्यस्थता मामलों में जरूरी कदम माना।
- In Re Article 370 of the Constitution of India (December 11, 2023): जम्मू और कश्मीर की विशेष स्थिति के निरसन को संवैधानिक रूप से स्वीकार किया, जिससे केंद्रीय सरकार की शक्ति की पुष्टि हुई। इस निर्णय ने केंद्रीय और राज्य सरकारों के अधिकारों के बीच संतुलन स्थापित किया।
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अन्य महत्वपूर्ण मामले:
- Re: Interplay Between Arbitration Agreements Under the Indian Stamp Act (December 13, 2023): न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि अपर्याप्त रूप से स्टांम्प किए गए मध्यस्थता समझौतों को लागू किया जा सकता है, लेकिन इन समझौतों को कोर्ट में प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जाएगा जब तक कि उन्हें सही रूप से स्टांम्प नहीं किया जाए।
- Association for Democratic Reforms v. Union of India (February 15, 2024): चुनावी बांडों को असंवैधानिक करार दिया, राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता की आवश्यकता पर जोर दिया। यह फैसला राजनीतिक वित्तपोषण में अधिक पारदर्शिता लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।
- Sita Soren vs Union of India (March 4, 2024): सांसदों को रिश्वतखोरी से सुरक्षा नहीं देने वाले 1998 के फैसले को पलटते हुए, संसद के कार्यों में नैतिकता की रक्षा की। यह निर्णय संसद और लोकतांत्रिक संस्थाओं की स्वच्छता के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था।
- Mineral Area Development Authority v. Steel Authority of India (July 25, 2024): खनिज अधिकारों पर राज्य सरकारों को कर लगाने की शक्ति की पुष्टि की। यह निर्णय संघीय ढांचे में राज्यों के अधिकारों को मान्यता देता है और राज्य सरकारों को खनिज संसाधनों पर अधिक अधिकार देता है।
- Aligarh Muslim University v. Naresh Agarwal (November 8, 2024): अल्पसंख्यक संस्थाओं को अधिक स्वायत्तता देने वाले फैसले के साथ शिक्षा के अधिकार को मजबूत किया। चंद्रचूड़ के इस निर्णय ने अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थाओं के प्रशासन में अधिक स्वतंत्रता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया।
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चंद्रचूड़ की दृष्टि और धरोहर:
चंद्रचूड़ का कार्यकाल भारतीय न्यायशास्त्र पर एक अमिट छाप छोड़ चुका है। उनकी न्यायिक दृष्टि प्रगतिशील थी और उन्होंने संविधान को “living document” माना, जो समाज के साथ विकसित होना चाहिए। उनके फैसलों का उद्देश्य व्यक्तिगत स्वतंत्रताओं की रक्षा करना, सरकारी जवाबदेही सुनिश्चित करना, और लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखना था। चाहे वह समलैंगिक अधिकारों से जुड़ा मामला हो, राजनीतिक पारदर्शिता पर निर्णय हो, या निजी अधिकारों की सुरक्षा, चंद्रचूड़ ने कानून की एक समावेशी और न्यायपूर्ण व्याख्या की दिशा में निरंतर योगदान दिया।
चंद्रचूड़ का कार्यकाल यह याद दिलाता है कि एक न्यायधीश का निर्णय न केवल कानूनी तथ्यों पर आधारित होता है, बल्कि यह समाज की प्रगति और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए एक आदर्श होता है। उनके निर्णय भारतीय न्यायपालिका की प्रतिबद्धता और प्रगति के प्रतीक हैं, और वे भविष्य में न्यायिक मामलों के लिए मार्गदर्शन प्रदान करेंगे।
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