ट्रम्प की जीत के बाद भारतीय रुपया सबसे निचले स्तर पर, डॉलर के मुकाबले गिरावट जारी
डोनाल्ड ट्रम्प की अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव में जीत ने न सिर्फ अमेरिकी राजनीति बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी गहरा प्रभाव डाला है। इसका सीधा असर भारतीय रुपये पर देखने को मिला, जो अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अपने सबसे निचले स्तर 84.37 पर पहुंच गया है। विदेशी निवेशकों द्वारा भारतीय शेयर बाजार से निकासी और डॉलर की बढ़ती मांग ने रुपये पर भारी दबाव डाला है।
विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले दिनों में रुपया और अधिक गिर सकता है, खासकर अगर वैश्विक घटनाक्रम और अमेरिका की नई नीतियां, खासकर ट्रम्प की fiscal policies, रुपया पर और दबाव बनाती हैं।
क्यों गिर रहा है रुपया?
अंतर्राष्ट्रीय बाजार में अमेरिकी डॉलर की मजबूती एक बड़ा कारण है। अमेरिकी निवेशकों को लगता है कि ट्रम्प की जीत से डॉलर की वैल्यू और बढ़ेगी, जिससे वे सुरक्षित निवेश (safe haven) के रूप में डॉलर की ओर रुख कर रहे हैं। इसके अलावा, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (foreign portfolio investors) भारतीय शेयर बाजार से बड़ी मात्रा में निकासी कर रहे हैं, जिससे रुपये पर अतिरिक्त दबाव आ रहा है।
EbixCash World Money के कार्यकारी निदेशक एम. हरिप्रसाद ने कहा, “ट्रम्प की जीत के बाद डॉलर की मांग में जबरदस्त वृद्धि देखी गई है। भारतीय रुपया फिलहाल कुछ अन्य एशियाई मुद्राओं से बेहतर प्रदर्शन कर रहा है, लेकिन डॉलर की मांग ने इसे कमजोर कर दिया है।” उन्होंने यह भी कहा कि इस गिरावट से आयातक प्रभावित हो सकते हैं, हालांकि शिक्षा और यात्रा की मांग पर इसका बहुत असर नहीं पड़ेगा। “हम दिसंबर यात्रा के लिए मजबूत मांग देख रहे हैं,” हरिप्रसाद ने जोड़ा।
बाजार में अनिश्चितता और भविष्य की चुनौतियाँ
अर्थशास्त्रियों का मानना है कि अगर वेस्ट एशिया (West Asia) में संकट गहराता है या वैश्विक बाजार में कोई और अस्थिरता आती है, तो रुपये पर और अधिक दबाव आ सकता है। हालांकि, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) स्थिति को संभालने के लिए मुद्रा भंडार (reserves) का इस्तेमाल कर सकता है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि RBI इस समय सावधानी से कदम उठाएगा ताकि अन्य उभरते बाजारों की मुद्राओं के साथ तालमेल बना रहे।
ट्रम्प की fiscal policies, खासकर proposed tariffs और immigration restrictions, वैश्विक व्यापार और निवेश को प्रभावित कर सकती हैं, जिससे मुद्राओं में उतार-चढ़ाव का दौर जारी रहेगा। इस संदर्भ में के. एन. डे, एक फॉरेक्स कंसल्टेंट, ने कहा, “यह गिरावट तब खत्म होगी जब रुपया 84.40 से 84.45 के स्तर पर पहुंच जाएगा। उसके बाद रुपया 84.10 तक सुधर सकता है, बशर्ते वेस्ट एशिया में स्थिति और खराब न हो।”
“ट्रम्प ट्रेड” और डॉलर की मजबूती
वॉल स्ट्रीट ने इस गिरावट को “ट्रम्प ट्रेड” का नाम दिया है, जहां निवेशक डॉलर में बड़े पैमाने पर निवेश कर रहे हैं। डॉलर इंडेक्स भी चार महीने के उच्च स्तर पर पहुंच गया है, और बुधवार को अन्य मुद्राओं की तुलना में डॉलर में 2% की सबसे बड़ी बढ़त देखी गई। विशेषज्ञों के मुताबिक, ट्रम्प की नीतियों के कारण अमेरिका में महंगाई (inflation) बढ़ सकती है, जिससे डॉलर की मांग और बढ़ेगी।
भारतीय शेयर बाजार भी इस गिरावट से अछूता नहीं रहा है। विदेशी निवेशक पिछले महीने से लगातार भारतीय बाजार से पैसा निकाल रहे हैं, जिससे बाजार में अस्थिरता बढ़ रही है। पिछले महीने निफ्टी 50 (Nifty 50) इंडेक्स में 6% की गिरावट दर्ज की गई, जो मार्च 2020 के बाद से सबसे बड़ी गिरावट थी।
RBI का रुख और भारतीय अर्थव्यवस्था
हालांकि भारतीय रिजर्व बैंक ने रुपये की गिरावट को रोकने के लिए अभी तक सीमित हस्तक्षेप किया है, लेकिन आगे चलकर इसका रुख महत्वपूर्ण रहेगा। बाजार के जानकारों का मानना है कि RBI धीरे-धीरे हस्तक्षेप करेगा ताकि बाजार की अस्थिरता को नियंत्रित किया जा सके और विदेशी निवेशकों को बाहर जाने से रोका जा सके।
इस गिरावट का भारतीय आयातकों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, क्योंकि उन्हें ज्यादा महंगे आयात का सामना करना पड़ेगा। वहीं, निर्यातकों के लिए यह अवसर साबित हो सकता है क्योंकि कमजोर रुपया उनके उत्पादों को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में अधिक प्रतिस्पर्धी बना सकता है।
निष्कर्ष
डोनाल्ड ट्रम्प की जीत के बाद रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अपने सबसे निचले स्तर पर आ गया है। आने वाले दिनों में वैश्विक आर्थिक स्थितियों और ट्रम्प की नीतियों के चलते इसमें और गिरावट की संभावना है। ऐसे में भारतीय बाजार और रिजर्व बैंक के कदम भारतीय अर्थव्यवस्था के भविष्य के लिए अहम साबित होंगे।
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