यह विधेयक नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपमुख्यमंत्री सुरिंदर चौधरी द्वारा पेश किया गया, जिसे कई विपक्षी दलों का समर्थन मिला
जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा 2019 में अनुच्छेद 370 के तहत रद्द कर दिया गया था, जिसके बाद राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया गया
हालांकि विधानसभा ने यह विधेयक पारित किया है, लेकिन इसे राष्ट्रीय स्तर पर कानूनी और संवैधानिक बाधाओं का सामना करना पड़ेगा।
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने 2023 में अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण को संवैधानिक रूप से वैध करार दिया, जिससे इसे बहाल करने के लिए राज्य-स्तरीय प्रयासों की संभावना कम हो गई।
जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति बहाल करने के लिए भारतीय संसद को विशेष बहुमत के साथ एक संविधान संशोधन पारित करना होगा, जो वर्तमान सरकार की स्थिति को देखते हुए असंभव प्रतीत होता है।
यह विधेयक नेशनल कॉन्फ्रेंस और PDP जैसी क्षेत्रीय पार्टियों की रणनीति का हिस्सा हो सकता है, जिससे वे भविष्य के चुनावों के लिए अपनी राजनीतिक स्थिति मजबूत कर सकें।
केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण को आवश्यक कदम बताया था, ताकि जम्मू-कश्मीर को भारतीय संघ में पूरी तरह से एकीकृत किया जा सके।
विधेयक पारित होने के बावजूद, इसकी प्रतीकात्मकता ज्यादा मानी जा रही है। संवैधानिक संशोधन और कानूनी चुनौतियों के बिना इसे लागू करना कठिन होगा।